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भारत में दालों की आत्मनिर्भरता पर सवाल, रकबा घटा 31 लाख हेक्टेयर

भारत में दालों की आत्मनिर्भरता

नई दिल्ली: ‘आत्मनिर्भर भारत’ के नारे और योजनाओं के बीच देश में दालों का आयात तेजी से बढ़ता जा रहा है। हालात यह हैं कि भारत हर साल दालों के आयात का नया रिकॉर्ड बना रहा है। इस साल दलहन आयात 77 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया है, जबकि पिछले पांच वर्षों में देश ने लगभग 1.25 लाख करोड़ रुपये सिर्फ दालों के आयात पर खर्च किए हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि बढ़ते आयात बिल के बावजूद देश में दलहन फसलों की खेती घटती जा रही है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, बीते चार साल में दलहन फसलों का क्षेत्रफल 31 लाख हेक्टेयर घटकर 276.24 लाख हेक्टेयर रह गया है। सवाल उठता है कि आखिर भारत में दालों की आत्मनिर्भरता का सपना क्यों अधूरा है?

केंद्र का दलहन मिशन: 2030 तक आत्मनिर्भरता का लक्ष्य

केंद्रीय कैबिनेट ने हाल ही में ‘दलहन मिशन’ को मंजूरी दी है ताकि भारत को दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया जा सके। इस योजना के तहत सरकार ने 2030-31 तक दलहन फसलों का क्षेत्रफल 310 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है। वर्तमान में यह क्षेत्र 275 लाख हेक्टेयर है, यानी 35 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र जोड़ने की योजना है। इसके साथ ही उत्पादन को 350 लाख टन और उत्पादकता को 1130 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। इस मिशन पर सरकार 11,440 करोड़ रुपये खर्च करेगी और देश के 416 जिलों में इसे लागू किया जाएगा। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि यह योजना “दाम की गारंटी” के बिना अधूरी है।

दाम के बिना कैसे बनेगी आत्मनिर्भरता?

भारत में दुनिया के दलहन फसलों के 35.87% क्षेत्र और 27.4% उत्पादन का योगदान है। यानी हम सबसे बड़े उत्पादक हैं, लेकिन मांग और आपूर्ति में अंतर के कारण सबसे बड़े आयातक देश भी हैं। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसानों को उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तक नहीं मिलेगा, तो कोई भी योजना सफल नहीं हो पाएगी। किसान वही फसल बोते हैं जिसमें लाभ की गारंटी हो, न कि सिर्फ सरकारी नारे हों।

क्यों घटा दलहन फसलों का रकबा?

कृषि मंत्रालय के अनुसार, साल 2021-22 में दलहन फसलों का क्षेत्रफल 307.31 लाख हेक्टेयर था, जो 2024-25 में घटकर 276.24 लाख हेक्टेयर रह गया। इसकी सबसे बड़ी वजह है किसानों को कम दाम मिलना। दलहन उत्पादक किसानों को MSP तक नहीं मिल पा रहा, जबकि खेती की लागत लगातार बढ़ रही है। मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि पांच प्रमुख दलहन फसलों में से चार की मंडी कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई है।

मांग ज्यादा, दाम कम: उलटी दिशा में बाजार

कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक,

  • तूर दाल के दाम में अगस्त 2024 से अगस्त 2025 तक 42% की गिरावट,
  • उड़द में 20%,
  • चना में 18% की गिरावट दर्ज हुई।
    1 अक्टूबर तक तूर दाल MSP से ₹1,838, मूंग ₹2,250, और उड़द ₹2,063 रुपये प्रति क्विंटल कम भाव पर बिक रही थी।

यह तब है जब भारत दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं है। कृषि विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि जब मांग अधिक है, तब किसानों को दाम कम क्यों मिल रहे हैं? नीति आयोग और कृषि मंत्रालय की आयात नीतियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

आयात से बढ़ी दिक्कतें: क्या किसानों को नुकसान की साजिश?

नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि भारत में दालों की मांग 290 लाख टन और उत्पादन 252.38 लाख टन है, यानी करीब 38 लाख टन की कमी। फिर भी भारत ने 76.54 लाख मीट्रिक टन दालों का आयात किया जरूरत से दोगुना! विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि जब देश को 38 लाख टन की ही जरूरत थी, तो क्यों 77 लाख टन का आयात किया गया? क्या यह नीति किसानों को एमएसपी से वंचित कर सस्ते आयात से नुकसान पहुंचाने की कोशिश है?

अमित शाह का वादा: दिसंबर 2027 तक आत्मनिर्भर भारत

केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने जनवरी 2024 में कहा था कि “दिसंबर 2027 से पहले भारत दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर बन जाएगा और देश को एक किलो दाल भी आयात नहीं करनी पड़ेगी।” हालांकि मौजूदा हालात को देखकर यह दावा काफी चुनौतीपूर्ण नजर आता है। अगर किसानों को एमएसपी और प्रोत्साहन नहीं मिला, तो यह लक्ष्य भी सिर्फ कागजों तक सीमित रह जाएगा।

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