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BAU सबौर में विकसित होगी मल्टी-कट चारा मक्का, सालभर मिलेगा हरा चारा

BAU सबौर

सबौर: बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU सबौर) कृषि और पशुपालन क्षेत्र में नई तकनीकों को अपनाते हुए एक बड़ी पहल करने जा रहा है। विश्वविद्यालय जल्द ही मल्टी-कट चारा मक्का (Multi-Cut Fodder Maize) विकसित करेगा, जिससे किसानों को पूरे वर्ष हरा चारा उपलब्ध रहेगा। इस परियोजना के तहत मक्का के जंगली पूर्वज टियोसिन्टे (Teosinte) को प्रजनन कार्यक्रमों में शामिल किया जा रहा है। यह कदम न केवल बायोमास उत्पादन को बढ़ाएगा बल्कि पोषण गुणवत्ता में भी सुधार करेगा।

IIMR लुधियाना की टीम ने की समीक्षा

आईसीएआर – भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR), लुधियाना की उच्च स्तरीय मॉनिटरिंग टीम ने बीएयू सबौर का दौरा किया और इस नवाचारपूर्ण शोध की समीक्षा की। टीम ने टियोसिन्टे के उपयोग को मल्टी-कट मक्का किस्मों के विकास में अहम बताया। इससे किसानों को पूरे मौसम में कई बार कटाई के बाद लगातार हरा चारा प्राप्त हो सकेगा।

बीएयू सबौर का मुख्य लक्ष्य – चारा मक्का प्रजनन

बीएयू के कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह ने कहा कि आनुवंशिक सुधार, कृषि तकनीक और रोग-कीट प्रबंधन के समेकित प्रयासों से मक्का की स्थायी उत्पादकता और चारा सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी। विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. ए. के. सिंह ने बताया कि चारा मक्का प्रजनन बीएयू का प्रमुख लक्ष्य है, जिसके माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि और पशुपालन क्षेत्र को मजबूती मिलेगी।

कुलपति डॉ. सिंह ने आगे कहा कि AICRP on Maize के तहत अपनाया गया समेकित दृष्टिकोण स्थायी मक्का उत्पादकता और चारा सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उत्कृष्ट उदाहरण है।

टियोसिन्टे जर्मप्लाज्म साझा करने का आश्वासन

आईआईएमआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एन. के. सिंह ने इस शोध के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि टियोसिन्टे जर्मप्लाज्म बीएयू को उपलब्ध कराया जाएगा ताकि यहां इस नवाचारी प्रजनन कार्यक्रम की शुरुआत की जा सके।

पोषक तत्वों से भरपूर नई मक्का किस्में

विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक अब टियोसिन्टे का उपयोग कर मल्टी-कट, उच्च बायोमास और पोषक तत्वों से भरपूर मक्का की नई किस्में विकसित कर रहे हैं। इससे हरा चारा उत्पादन बढ़ेगा, पशुपालन सशक्त होगा और बिहार के किसानों की आय में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी।

वैज्ञानिकों ने दिए तकनीकी सुझाव

बीएयू की वैज्ञानिक डॉ. श्राबणी देबनाथ ने मक्का में फैलने वाले बैक्टीरियल लीफ और शीथ ब्लाइट रोगों पर अनुसंधान तेज करने की बात कही। वहीं डॉ. महेश कुमार ने रेज्ड-बेड प्लांटिंग प्रणाली को उपयोगी बताया। डॉ. सौजन्या पी. एल. ने सुझाव दिया कि बीएयू को फॉल आर्मी वॉर्म कीट निगरानी और स्क्रीनिंग का क्षेत्रीय केंद्र बनाया जाए।

बिहार के कृषि और पशुपालन क्षेत्र में नया अध्याय

यह पहल न केवल पशुपालन को सशक्त बनाएगी, बल्कि बिहार में कृषि क्षेत्र को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएगी। मल्टी-कट चारा मक्का से किसानों को सालभर गुणवत्तापूर्ण हरा चारा मिलेगा, जिससे राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती और युवाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिलेगा।

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